1957 के स्वतंत्रता संग्राम में शहादत देने वाले ‘पीर अली’ का क्या आपने सुना है नाम

आपने पीर अली का नाम सुना है? सन सत्तावन के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कुछ ऐसे लोग रहे हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी शहादत दी, पर गुमनाम रहे. पीर अली भी वैसे ही नाम है.

पीर अली बिहार के एक प्रमुख मुस्लिम क्रांतिकारी थे. बेशक, वह कोई जमींदार या सैन्य कमांडर नहीं थे. पीर अली खान एक गरीब जिल्दसाज (बुक बाइंडर) थे, जो स्वतंत्रता सेनानियों के बीच महत्वपूर्ण पत्रिकाएं, पुस्तिकाएं और खुफिया संदेशों को गुप्त रूप से पहुंचाते थे.

जब इस आजादी के आंदोलन का अंग्रेजों ने दमन कर दिया तो पटना के तब के कमिश्नर विलियम टेलर ने सार्वजनिक रूप से पीर अली को फांसी दे दी थी.

पीर अली का उल्लेख ज्यादातर इतिहास की किताबों में नहीं मिलता है.

गौरतलब है कि पीर अली, बाबू वीर कुंवर सिंह की तरह 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बिहार के नायक थे और आजादी के जंग में उनका योगदान कुंवर सिंह से कम महत्वपूर्ण नहीं था. पीर अली खान और उनके साथियो ने 1857 में ‘वहाबी’आन्दोलन का नेतृत्व किया था, क्योंकि वो खुद इससे जुड़े थे. इनकी नुमाइंदगी ‘उलेमा-ए-सादिक़पुरिया’करते थे.

1857 के विद्रोह के दौरान जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो पीर अली महज 37 साल के थे. 7 जुलाई, 1857 को पटना के कमिश्नर विलियम टेलर ने 30 अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ पीर अली को भी फांसी दे दी थी.

उनकी याद में पटना में उनका मजार भी बनाया गया था और एक मोहल्ले का नाम भी उनके नाम पर रखा गया. उस मुहल्ले को पीरबहोर है.

उत्तर प्रदेश के आजमगढढ़ जिले के गांव मुहम्मदपुर में जन्मे पीर अली किशोरावस्था में ही घर से भागकर पटना आ गए थे. पटना के एक जमींदार नवाब मीर अब्दुल्लाह ने उनकी परवरिश की और उन्हें पढ़ाया-लिखाया.

दिल्ली के क्रांतिकारी अजीमुल्ला खान ने उनका मार्गदर्शन किया. 1857 की क्रांति के वक्त बिहार में घूम-घूमकर लोगों में आजादी और संघर्ष का जज्बा पैदा करने और उन्हें संगठित करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी.

हालांकि, वह महज किताब बेचने वाले साधारण से जिल्दसाज थे लेकिन पटना के लोगों में बहुत लोकप्रिय थे. क्रांतिकारी परिषद्, पर उनका अत्यधिक प्रभाव था. उन्होंने धनी वर्ग के सहयोग से अनेक व्यक्तियों को संगठित किया और उनमें क्रांति की भावना का प्रसार किया. लोगों ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वे ब्रिटिश कंपनी की सत्ता को जड़मूल से नष्ट कर देंगे.

बहरहाल, आजादी के 75 साल होने के मौके पर इस अमृत महोत्सव में, हमारा दायित्व है कि हम इन गुमनाम सिपाहियों और शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि दें.

Source: Awaz The Voice

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